आचार्य श्री विद्यासागर जी की बुंदेली पूजन (मुनि सुव्रत सागर जी रचित )
अरे मोरे गुरुवर विद्यासागर , सब जन पूजत हैं तुमखों ,हम सोई पूजन खों आये
हम सोई पूजन खों आये, तारो गुरू झट्टई हमकों , मोरे हृदय आन विराजो
मोरे हृदय आन विराजो, हाथ जोर के टेरत हैं , और बाट जई हेर रहे हम
और बाट जई हेर रहे हम, हँस के गुरू कबे हैरत हैं , मोरे गुरुवर विद्यासागर
ॐ ह्रीँ आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय अत्र अवतर अवतर संवौसठ इति आह्वानम्।
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।
अत्र मम सन्निहितो भव भव वसठ सन्निधिकरणम्
अरे बाप मतारी दोई जनो ने , बेर बेर जन्मों मोखों , बालापन गओ आई जवानी
बालापन गओ आई जवानी ,आओ बुढ़ापो फिर मोखों , नर्रा नर्रा के हम मर गए
नर्रा नर्रा के हम मर गए ,बात सुने ने कोऊ हमाई , जीवो , मरवो और बुढ़ापो
जीवो , मरवो और बुढ़ापो, मिटा देओ मोरो दुःखदाई ,मोरे गुरुवर विद्यासागर ॥ १ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय जनम जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा
अरे मोरे भीतर आगी बर्ररई , हम दिन रात बरत ऊ में , दुनिया दारी की लपटों में
दुनिया दारी की लपटों में,जूड़ा पन ने पाओ मैं , मौय कबहु अपनों ने मारो
मौय कबहु अपनों ने मारो, कबहुँ पराये करत दुःखी , ऐसी जा भव आग बुझा दो
ऐसी जा भव आग बुझा दो, देओ सबोरी करो सुखी, मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥ २ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय संसार ताप विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा
कबहुँ बना दओ मो खों बड्डो , आगे आगे कर मारो , कबहुँ बना के मोखों नन्हो
कबहुँ बना के मोखों नन्हो, बहोतइ मोये दबा डारो , अब तो मोरो जी उकता गओ
अब तो मोरो जी उकता गओ , चमक-धमक की दुनिया में , अपने घाईं मोये बना लो
अपने घाईं मोये बना लो , काये फिरा रये दुनिया में , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥ ३ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा
अरे कामदेव तो तुमसे हारो , मोये कुलच्छी पिटवावे, सारो जग तो मोरे बस में
सारो जग तो मोरे बस में , पर जो मोंखों हरवावै , हाथ जोड़ के पाँव परे हम
हाथ जोड़ के पाँव पड़े हम , गेल बता दो लड़वे की , ई खों जीते मार भगावे
ई खों जीते मार भगावे, ब्रह्मचर्य व्रत धरवें की , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥ ४ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा
हमतों भूखे नै रै पावे , लडूआ पेड़ा सब चाने , लचई ठलूड़ा खींच ओरिया
लचई ठलूड़ा खींच ओरिया , तातो बासो सब खाने , इनसे अब तो बहोत दुःखी भये
इनसे अब तो बहोत दुःखी भये , देओ मुक्ति इनसे मोखों , मोये पिला दो आतम ईमरत
मोये पिला दो आतम ईमरत ,नैवज से पूजत तुमखों , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥ ५ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय क्षुधा रोग विनाशाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा
रे दुनिया कौ जो अंधियारो तो , मिटा लेत है हर कोऊ , मोह रहो कजरारो कारो
मोह रहो कजरारो कारो , मिटा सके नै हर कोई , ज्ञान ज्योति से ये करिया को
ज्ञान ज्योति से ये करिया को , तुमने करिया मो कर दओ , ऊसई जोत जगा दो मेरी
ऊसई जोत जगा दो मेरी , दिया जो सुव्रत कर दओ , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥ ६ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय मोहान्धकार विनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा
अरे खूबई होरी हमने बारी , मोरी काया राख करी , पथरा सी छाती वारे जे
पथरा सी छाती वारे जे , करम बरे ने राख भई , तुम तो खूबई करो तपस्या
तुम तो खूबई करो तपस्या, ओई ताप से करम बरें , मोये सिखा दो ऐसे लच्छन
मोये सिखा दो ऐसे लच्छन , तुमसों हम भी ध्यान धरें , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥ ७ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा
तुमतो कोनऊ फल नई खाउत , पीउत कोनहु रस नइयां , फिर भी देखो कैसे चमकत
फिर भी देखो कैसे चमकत , तुम जैसो कोनऊ नइयां , हम फल खाके ऊबे नइयां
हम फल खाके ऊबे नइयां , फिर भी चाने शिव फल खों , ओई से तो चढ़ा रहे हम
ओई से तो चढ़ा रहे हम, तुम चरनो में इन फल खों , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥८ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय महामोक्षफल प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा
ऊसई ऊसई अरघ चढ़ाके , मोरे दोनउ हाथ छिले , ऊसई ऊसई तीरथ करके
ऊसई ऊसई तीरथ करके, मोरे दोनउ पाँव छिले , नै तो अनरघ हम बन पाये
नै तो अनरघ हम बन पाये, नै तीरथ सो रूप बनो , ऐई से तो तुम्हे पुकारे
ऐई से तो तुम्हे पुकारे , दे दो आतम रूप घनो , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥९ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय अनर्घ पद प्राप्ताय अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा
अरे मलप्पा जू के तुम मोड़ा ,श्रीमति मैया के लल्ला , गाँव आपनो तज के देखो
गाँव आपनो तज के देखो, करो धरम को तुम हल्ला , दया धरम को डण्डा लेके
दया धरम को डण्डा लेके, फेहरा रहे तुम तो झण्डा , ऐसे तुम हो ज्ञानी ध्यानी
ऐसे तुम हो ज्ञानी ध्यानी , फोड़त पापों को भंडा , एकई बिरियाँ ठाड़े होके
एकई बिरियाँ ठाड़े होके , खात , लेत ने हरियाई ,नोन मसालों माल मलीदा
नोन मसालों माल मलीदा , कबहुँ खाओ ने गुरयाई ,जड़कारे में कबहुँ ने ओढ़ो
जड़कारे में कबहुँ ने ओढ़ो ,तुम चाढ़ो प्यार चटाई , जेठ मास में गर्मी से ने
जेठ मास में गर्मी से ने , पियो कबहुँ ने ठंडाई , तुम वैरागी हो निरमोही
तुम वैरागी हो निरमोही , सच्ची मुच्ची में भईया , बनके जिनवाणी के लल्ला
बनके जिनवाणी के लल्ला, पूजो जिनवाणी मैय्या , सब जग के तुम गुरूवर बन गये
सब जग के तुम गुरूवर बन गये , ई में का कैसो अचरज , गुरू के संगे मात पिता के
गुरू के संगे मात पिता के , गुरू बन गये जो है अचरज , मोये तुम्हारी चर्या भा गयी
मोये तुम्हारी चर्या भा गयी, तबई करत अरचा तोरी , तीनई बिरियाँ माला फेरत
तीनई बिरियाँ माला फेरत , रोज करता चर्चा तोरी , और जो मोरो पगला मनवा
और जो मोरो पगला मनवा , तुमखों तज के ने जावे , कबहुँ रमे ने जो बंदरा सो
कबहुँ रमे ने जो बंदरा सो , उचक उचक के इते आवे , कबहुँ कबहुँ जो मोरई बनके
कबहुँ कबहुँ जो मोरई बनके , खूबई खूब नचत भईया , सो सब हमखों कहे दिवानो
सो सब हमखों कहे दिवानो , और केत का का नइयां ,बहुत बड़े आसामी तुम तो
बहुत बड़े आसामी तुम तो , तुम व्यापार करो नगदी , सौदा को नै काम करो तुम
सौदा को नै काम करो तुम , नै दुकान नै है गद्दी , जग जाहिर मुस्कान तुमारी
जग जाहिर मुस्कान तुमारी, तुमसी कला कहूँ नइयां ,नै कोऊ खों हामी भरते
नै कोऊ खों हामी भरते, नाहीं कबहु करत नइयां , मूड़ उठा के हेरत नइयां
मूड़ उठा के हेरत नइयां ,और केत देखो देखो , चिटीया जीव जन्तु दिख जावें
चिटीया जीव जन्तु दिख जावें , पे भक्तों को ने देखो , महावीर को समवशरण तो
महावीर को समवशरण तो, राजगिरी पे खूब लगो ,ऊसई बुन्देली में शोभें
ऊसई बुन्देली में शोभें , संग तुम्हारो खूब बड़ो , करी बड़े बाबा की सेवा
करी बड़े बाबा की सेवा , सो बन गए छोटे बाबा , काम करो तुम बड़े बड़े पे
काम करो तुम बड़े बड़े पे, काय केत छोटे बाबा ,कबहुँ कबहुँ तो तुम बोलत हो
कबहुँ कबहुँ तो तुम बोलत हो , आगम को तब ध्यान रखो , समयसार को खूबई घोखों
समयसार को खूबई घोखों , आतम रस को खूब चखो , नोने नोने ग्रन्थ रचा दये
नोने नोने ग्रन्थ रचा दये , बहुत बना दये तीरथ हैं , दुखियों की करुणा खों सुनके
दुखियों की करुणा खों सुनके , हाथ दया को फेरत है ,ये की का का कथा कहें हम
ये की का का कथा कहें हम, कबहुँ होये जा ने पूरी,भक्तों को भगवान बनाके
भक्तों को भगवान बनाके , हर लई उनकी मज़बूरी ,इतनो सब उपकार करत हो
इतनो सब उपकार करत हो, फिर भी कछू केत नइयां , ऐई से तो जग जो केह रओ
ऐई से तो जग जो केह रओ , तुमसो कोनऊ है नइयां ,अब कृपा ऐसी कर दइयो
अब कृपा ऐसी कर दइयो , पाँव छाँव में मोये रखो ,अपने घाईं मोये बना लो
अपने घाईं मोये बना लो , अपने से ने दूर करो , सुव्रत की जा अरज सुनिजे
सुव्रत की जा अरज सुनिजे , और तनक सो मुस्कादो , भवसागर से मोरी नैया
भवसागर से मोरी नैया , झट्टई झट्टई तिरवा दो ,मोरे गुरूवर विद्यासागर
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा
गुण गावें , पूजा करें , करें भक्ति दिन रैन
बस इत्तई कृपा करो , मोये देओ सुख चैन
तुम तो बड़े उदार हो , और गुणी धनवान
पूजा जयमाला करी ,मैं मोड़ा नादान
विद्या गुरू खों केत सब , बुन्देली के नाथ
सो बुन्देली गीत गात , और झुका रये माथ
जय बोलिए गुरूवर विद्यासागर जी महराज की जय हो
अरे मोरे गुरुवर विद्यासागर , सब जन पूजत हैं तुमखों ,हम सोई पूजन खों आये
हम सोई पूजन खों आये, तारो गुरू झट्टई हमकों , मोरे हृदय आन विराजो
मोरे हृदय आन विराजो, हाथ जोर के टेरत हैं , और बाट जई हेर रहे हम
और बाट जई हेर रहे हम, हँस के गुरू कबे हैरत हैं , मोरे गुरुवर विद्यासागर
ॐ ह्रीँ आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय अत्र अवतर अवतर संवौसठ इति आह्वानम्।
अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्।
अत्र मम सन्निहितो भव भव वसठ सन्निधिकरणम्
अरे बाप मतारी दोई जनो ने , बेर बेर जन्मों मोखों , बालापन गओ आई जवानी
बालापन गओ आई जवानी ,आओ बुढ़ापो फिर मोखों , नर्रा नर्रा के हम मर गए
नर्रा नर्रा के हम मर गए ,बात सुने ने कोऊ हमाई , जीवो , मरवो और बुढ़ापो
जीवो , मरवो और बुढ़ापो, मिटा देओ मोरो दुःखदाई ,मोरे गुरुवर विद्यासागर ॥ १ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय जनम जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा
अरे मोरे भीतर आगी बर्ररई , हम दिन रात बरत ऊ में , दुनिया दारी की लपटों में
दुनिया दारी की लपटों में,जूड़ा पन ने पाओ मैं , मौय कबहु अपनों ने मारो
मौय कबहु अपनों ने मारो, कबहुँ पराये करत दुःखी , ऐसी जा भव आग बुझा दो
ऐसी जा भव आग बुझा दो, देओ सबोरी करो सुखी, मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥ २ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय संसार ताप विनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा
कबहुँ बना दओ मो खों बड्डो , आगे आगे कर मारो , कबहुँ बना के मोखों नन्हो
कबहुँ बना के मोखों नन्हो, बहोतइ मोये दबा डारो , अब तो मोरो जी उकता गओ
अब तो मोरो जी उकता गओ , चमक-धमक की दुनिया में , अपने घाईं मोये बना लो
अपने घाईं मोये बना लो , काये फिरा रये दुनिया में , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥ ३ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा
अरे कामदेव तो तुमसे हारो , मोये कुलच्छी पिटवावे, सारो जग तो मोरे बस में
सारो जग तो मोरे बस में , पर जो मोंखों हरवावै , हाथ जोड़ के पाँव परे हम
हाथ जोड़ के पाँव पड़े हम , गेल बता दो लड़वे की , ई खों जीते मार भगावे
ई खों जीते मार भगावे, ब्रह्मचर्य व्रत धरवें की , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥ ४ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा
हमतों भूखे नै रै पावे , लडूआ पेड़ा सब चाने , लचई ठलूड़ा खींच ओरिया
लचई ठलूड़ा खींच ओरिया , तातो बासो सब खाने , इनसे अब तो बहोत दुःखी भये
इनसे अब तो बहोत दुःखी भये , देओ मुक्ति इनसे मोखों , मोये पिला दो आतम ईमरत
मोये पिला दो आतम ईमरत ,नैवज से पूजत तुमखों , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥ ५ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय क्षुधा रोग विनाशाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा
रे दुनिया कौ जो अंधियारो तो , मिटा लेत है हर कोऊ , मोह रहो कजरारो कारो
मोह रहो कजरारो कारो , मिटा सके नै हर कोई , ज्ञान ज्योति से ये करिया को
ज्ञान ज्योति से ये करिया को , तुमने करिया मो कर दओ , ऊसई जोत जगा दो मेरी
ऊसई जोत जगा दो मेरी , दिया जो सुव्रत कर दओ , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥ ६ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय मोहान्धकार विनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा
अरे खूबई होरी हमने बारी , मोरी काया राख करी , पथरा सी छाती वारे जे
पथरा सी छाती वारे जे , करम बरे ने राख भई , तुम तो खूबई करो तपस्या
तुम तो खूबई करो तपस्या, ओई ताप से करम बरें , मोये सिखा दो ऐसे लच्छन
मोये सिखा दो ऐसे लच्छन , तुमसों हम भी ध्यान धरें , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥ ७ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय अष्ट कर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा
तुमतो कोनऊ फल नई खाउत , पीउत कोनहु रस नइयां , फिर भी देखो कैसे चमकत
फिर भी देखो कैसे चमकत , तुम जैसो कोनऊ नइयां , हम फल खाके ऊबे नइयां
हम फल खाके ऊबे नइयां , फिर भी चाने शिव फल खों , ओई से तो चढ़ा रहे हम
ओई से तो चढ़ा रहे हम, तुम चरनो में इन फल खों , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥८ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय महामोक्षफल प्राप्ताय फलं निर्वपामीति स्वाहा
ऊसई ऊसई अरघ चढ़ाके , मोरे दोनउ हाथ छिले , ऊसई ऊसई तीरथ करके
ऊसई ऊसई तीरथ करके, मोरे दोनउ पाँव छिले , नै तो अनरघ हम बन पाये
नै तो अनरघ हम बन पाये, नै तीरथ सो रूप बनो , ऐई से तो तुम्हे पुकारे
ऐई से तो तुम्हे पुकारे , दे दो आतम रूप घनो , मोरे गुरूवर विद्यासागर ॥९ ॥
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय अनर्घ पद प्राप्ताय अर्घम् निर्वपामीति स्वाहा
***जयमाला ***
विद्या गुरू सो कोऊ ने , जग में दूजो नाव
सबई जनें पूजत जिने , और परत हैं पाँव
दर्शन पूजन दूर है , इनको नाव महान
बड़ भागी पूजा करें , और बनावें काम
अरे मलप्पा जू के तुम मोड़ा ,श्रीमति मैया के लल्ला , गाँव आपनो तज के देखो
गाँव आपनो तज के देखो, करो धरम को तुम हल्ला , दया धरम को डण्डा लेके
दया धरम को डण्डा लेके, फेहरा रहे तुम तो झण्डा , ऐसे तुम हो ज्ञानी ध्यानी
ऐसे तुम हो ज्ञानी ध्यानी , फोड़त पापों को भंडा , एकई बिरियाँ ठाड़े होके
एकई बिरियाँ ठाड़े होके , खात , लेत ने हरियाई ,नोन मसालों माल मलीदा
नोन मसालों माल मलीदा , कबहुँ खाओ ने गुरयाई ,जड़कारे में कबहुँ ने ओढ़ो
जड़कारे में कबहुँ ने ओढ़ो ,तुम चाढ़ो प्यार चटाई , जेठ मास में गर्मी से ने
जेठ मास में गर्मी से ने , पियो कबहुँ ने ठंडाई , तुम वैरागी हो निरमोही
तुम वैरागी हो निरमोही , सच्ची मुच्ची में भईया , बनके जिनवाणी के लल्ला
बनके जिनवाणी के लल्ला, पूजो जिनवाणी मैय्या , सब जग के तुम गुरूवर बन गये
सब जग के तुम गुरूवर बन गये , ई में का कैसो अचरज , गुरू के संगे मात पिता के
गुरू के संगे मात पिता के , गुरू बन गये जो है अचरज , मोये तुम्हारी चर्या भा गयी
मोये तुम्हारी चर्या भा गयी, तबई करत अरचा तोरी , तीनई बिरियाँ माला फेरत
तीनई बिरियाँ माला फेरत , रोज करता चर्चा तोरी , और जो मोरो पगला मनवा
और जो मोरो पगला मनवा , तुमखों तज के ने जावे , कबहुँ रमे ने जो बंदरा सो
कबहुँ रमे ने जो बंदरा सो , उचक उचक के इते आवे , कबहुँ कबहुँ जो मोरई बनके
कबहुँ कबहुँ जो मोरई बनके , खूबई खूब नचत भईया , सो सब हमखों कहे दिवानो
सो सब हमखों कहे दिवानो , और केत का का नइयां ,बहुत बड़े आसामी तुम तो
बहुत बड़े आसामी तुम तो , तुम व्यापार करो नगदी , सौदा को नै काम करो तुम
सौदा को नै काम करो तुम , नै दुकान नै है गद्दी , जग जाहिर मुस्कान तुमारी
जग जाहिर मुस्कान तुमारी, तुमसी कला कहूँ नइयां ,नै कोऊ खों हामी भरते
नै कोऊ खों हामी भरते, नाहीं कबहु करत नइयां , मूड़ उठा के हेरत नइयां
मूड़ उठा के हेरत नइयां ,और केत देखो देखो , चिटीया जीव जन्तु दिख जावें
चिटीया जीव जन्तु दिख जावें , पे भक्तों को ने देखो , महावीर को समवशरण तो
महावीर को समवशरण तो, राजगिरी पे खूब लगो ,ऊसई बुन्देली में शोभें
ऊसई बुन्देली में शोभें , संग तुम्हारो खूब बड़ो , करी बड़े बाबा की सेवा
करी बड़े बाबा की सेवा , सो बन गए छोटे बाबा , काम करो तुम बड़े बड़े पे
काम करो तुम बड़े बड़े पे, काय केत छोटे बाबा ,कबहुँ कबहुँ तो तुम बोलत हो
कबहुँ कबहुँ तो तुम बोलत हो , आगम को तब ध्यान रखो , समयसार को खूबई घोखों
समयसार को खूबई घोखों , आतम रस को खूब चखो , नोने नोने ग्रन्थ रचा दये
नोने नोने ग्रन्थ रचा दये , बहुत बना दये तीरथ हैं , दुखियों की करुणा खों सुनके
दुखियों की करुणा खों सुनके , हाथ दया को फेरत है ,ये की का का कथा कहें हम
ये की का का कथा कहें हम, कबहुँ होये जा ने पूरी,भक्तों को भगवान बनाके
भक्तों को भगवान बनाके , हर लई उनकी मज़बूरी ,इतनो सब उपकार करत हो
इतनो सब उपकार करत हो, फिर भी कछू केत नइयां , ऐई से तो जग जो केह रओ
ऐई से तो जग जो केह रओ , तुमसो कोनऊ है नइयां ,अब कृपा ऐसी कर दइयो
अब कृपा ऐसी कर दइयो , पाँव छाँव में मोये रखो ,अपने घाईं मोये बना लो
अपने घाईं मोये बना लो , अपने से ने दूर करो , सुव्रत की जा अरज सुनिजे
सुव्रत की जा अरज सुनिजे , और तनक सो मुस्कादो , भवसागर से मोरी नैया
भवसागर से मोरी नैया , झट्टई झट्टई तिरवा दो ,मोरे गुरूवर विद्यासागर
ॐ ह्रीं आचार्य गुरूवर श्री विद्यासागर जी मुनीन्द्राय जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा
गुण गावें , पूजा करें , करें भक्ति दिन रैन
बस इत्तई कृपा करो , मोये देओ सुख चैन
तुम तो बड़े उदार हो , और गुणी धनवान
पूजा जयमाला करी ,मैं मोड़ा नादान
विद्या गुरू खों केत सब , बुन्देली के नाथ
सो बुन्देली गीत गात , और झुका रये माथ
जय बोलिए गुरूवर विद्यासागर जी महराज की जय हो
Namostu Guruwar ∆
ReplyDeleteThanks a lot, Abhishek ji
Namostu Guruwar ∆
ReplyDeleteThanks a lot, Abhishek ji